Bihar Board Class 12th Hindi Book Solutions गद्य Chapter 1 बातचीत-
1. बालकृष्ण भट्ट की रचना बातचीत क्या है?
2. ‘जैसा काम वैसा परिणाम’ किस लेखक द्वारा रचित प्रहसन है?
3. बालकृष्ण किस काल के रचनाकार है?
4. बालकृष्ण भट्ट ने किस पत्रिका का सम्पादन किया?
5. ‘दमयंती स्वयंवर’ किस लेखक की रचना है?
6. “बातचीत’ शीर्षक निबंध के अनुसार जो कुछ मवाद या धुआँ जमा रहता है, वह भाप बनकर निकल पड़ता है। कैसे?
7. बालकृष्ण भट्ट किस युग के निबंधकार थे?
8. ‘जैसा काम वैसा परिणाम’ किस लेखक द्वारा रचित प्रहसन है?
9. ‘संवाद’ में सबसे महत्त्वपूर्ण क्या है?
10. ‘बोलने से ही मनुष्य के रूप का साक्षात्कार होता है। यह किसने कहा?
11. ‘आर्ट ऑफ कनवरसेशन’ कहाँ के लोगों में सर्वाधिक प्रचलित है?
12. कौन-सी रचना बालकृष्ण भट्ट की नहीं है?
13. ‘बातचीत से मन किस प्रकार का हो जाता है?
14. बालकृष्ण भट्ट ने कौन-सा मासिक पत्र निकाला था?
15. ‘असल बातचीत सिर्फ दो व्यक्तियों में ही हो सकती है।’ यह किसका मत है?
16. कौन-सी रचना बालकृष्ण भट्ट द्वारा रचित नहीं है?
17. ‘बातचीत’ शीर्षक निबंध के निबंधकार है-
18. एडीसन के अनुसार असल बातचीत कितने लोगों के बीच हो सकती है?
19. भट्टजी को किसने अँगरेजी साहित्य के एडीसन और स्टील की श्रेणी . में रखा है?
20. बालकृष्ण भट्ट का निवास स्थान कौन-सा है? .
21. बालकृष्ट भट्ट के पिता का क्या नाम था?
22. बालकृष्ण ने “हिन्दी प्रदीप’ नामक मासिक पत्रिका निकालना कब प्रारम्भ किया?
23. राबिंसन क्रूसो ने 16 वर्ष के उपरांत किसके मुख से एक बात सुनी?
24. कौन-सा उपन्यास बालकृष्ण भट्ट द्वारा रचित है?
25. नाटक के प्रारम्भ में होनेवाले मंगल पाठ को क्या कहा जाता है?
26. रॉबिंसन क्रूसो को कब तक मनुष्य का मुख देखने को नहीं मिला
27. बालकृष्ण भट्ट का जन्म हुआ था-
28. ‘बातचीत’ किस विद्या की रचना है?
29. बातचीत के माध्यम से बालकृष्ण भट्ट क्या बतलाना चाहते है?
30. कौन-सी रचना बालकृष्ण भट्ट की है?
31. किसके न होने से सृष्टि गूंगी प्रतीत होती है?
32. ‘संयोगिता स्वयंबर’ रचना है
33. मनुष्य की बातचीत का उत्तम तरीका क्या है?
34. ‘बातचीत’ शीर्षक निबंध के निबंधकार है ?
35. बालकृष्ण भट्ट का निवास स्थान कौन-सा है ?
बातचीत पाठ्य पुस्तक के प्रश्न एवं उनके उत्तर
उत्तर- अगर हममें वाशक्ति न होती तो यह समस्त सृष्टि गूंगी प्रतीत होती। सभी लोग चुपचाप बैठे रहते और हम जो बोलकर एक-दूसरे के सुख-दुख का अनुभव करते हैं वाशक्ति न होने के कारण एक-दूसरे से कह-सुन. भी नहीं पाते और न ही अनुभव कर पाते।
उत्तर- बातचीत के संबंध में वेन जॉनसन का मत है कि बोलने से ही मनुष्य के सही रूप का साक्षात्कार होता है। यह बहुत ही उचित जान पड़ता है। एडीसन का मत है कि असल बातचीत सिर्फ दो व्यक्तियों में हो सकती है जिसका तात्पर्य हुआ जब दो आदमी होते हैं तभी अपना दिल एक-दूसरे के सामने खोलते हैं। जब तीन हुए तब वह दो बात कोसों दूर गई। कहा भी है कि छह कानों में पड़ी बात खुल जाती है। दूसरे यह कि किसी तीसरे आदमी के आ जाते ही या तो वे दोनों अपनी बातचीत से निरस्त हो बैठेंगे या उसे निपट मूर्ख अज्ञानी, समझा बना लेंगे। जैसे गरम दूध और ठंडे पानी के दो बर्तन पास-पास असर होगा ३ आर्ट ऑफ कनवरशन बातचीत करने की एकमा काव्यकला प्रवीण मिलता गोल्डेन सीरिज पासपोर्ट सेटा के रखे जाएँ तो एक का असर दूसरे में पहुँच जाता है अर्थात् दूध ठंडा हो जाता है और पानी गरम। वैसे ही दो आदमी आपस पास बैठे हों तो एक का गुप्त असर दूसरे पर पहुँच जाता है। चाहे एक दूसरे को देखें भी नहीं। तब बोलने को कौन कहे एक के शरीर की विद्युत दूसरे में प्रवेश करने लगती है। जब पास बैठने का इतना असर होता है तब बातचीत में कितना अधिक असर होगा इसे कौन नहीं स्वीकार करेगा।
उत्तर- ‘आर्ट ऑफ कनवरसेशन’ बातचीत करने की एक कला (प्रविधि) है जो योरप के लोगों में ज्यादा प्रचलित है। इस बातचीत की प्रविधि की पूर्ण शोभा काव्यकला प्रवीण विद्वमंडली में है। ऐसी चतुराई के साथ इसमें प्रसंग छोड़े जाते हैं कि जिन्हें सुन कान को अत्यन्त सुख मिलता है। साथ ही इसका अन्य नाम शुद्ध गोष्ठी है। शुद्ध गोष्ठी की बातचीत को यह तारीफ है कि बात करनेवालों की जानकारी अथवा पंडिताई का अभिमान या कपट कहीं एक बात में ही प्रकट नहीं होता वरन् कर्ण रसाभास पैदा करने वाले शब्दों को बरकते हुए चतुर सयाने अपने बातचीत को सरस रखते हैं। दयनीय स्थिति यह है कि हमारे यहाँ के पंडित आधुनिक शुष्क बातचीत में जिसे शास्त्रार्थ कहते हैं, वैसा रस नहीं घोल सकते। इस प्रकार आर्ट ऑफ कनवरशेसन मनुष्य के द्वारा आपस में बातचीत करने की उत्तम कला है जिसके द्वारा मनुष्य बातचीत को हमेशा आनंदमय बनाये रखता है।
उत्तर- मनुष्य में बातचीत का सबसे उत्तम तरीका उसका आत्मवार्तालाप है। मनुष्य अपने अन्दर ऐसी शक्ति विकसित करे जिसके कारण वह अपने आप से बात कर लिया करे। आत्मवार्तालाप से तात्पर्य क्रोध पर नियंत्रण है जिसके कारण अन्य किसी व्यक्ति को कष्ट न पहुँचे। क्योंकि हमारी भीतरी मनोवृति प्रशिक्षण नए-नए रंग दिखाया करती है। वह हमेशा बदलती रहती है। लेखक बालकृष्ण भट्टजी इस मन को प्रपंचात्मक संसार का एक बड़ा आइना के रूप में देखते हैं जिसमें जैसा चाहो वैसी सूरत देख लेना कोई असंभव बात नहीं। अतः मनुष्य को चाहिए कि मन के चित्त को एकाग्र कर मनोवृत्ति स्थिर कर अपने आप से बातचीत करना सीखें। इससे आत्मचेतना का विकास होगा। उसी वाणी पर नियंत्रण हो जायेगा जिसके कारण दुनिया से किसी से न बैर रहेगा और बिना प्रयास के हम बड़े-बड़े अजेय शत्रु पर भी विजय पा सकते हैं। यदि ऐसा हुआ तो हम सर्वथा एक नवीन संसार की रचना कर सकते हैं। इससे हमारी वाशक्ति का दमन भी नहीं होगा। अत: व्यक्ति को चाहिए कि अपनी जिह्वा को काबू में रखकर मधुरता से भरी वाणी बोले। जिससे न किसी से कटुता रहेगी न बैर। इससे दुनिया खूबसूरत हो जायेगी। मनुष्य के बातचीत करने का यही सबसे उत्तम तरीका है।
प्रस्तुत कहानी ‘बातचीत’ के लेखक महान् पत्रकार बालकृष्ण भट्ट हैं : बालकृष्ण भट्ट आधुनिक हिन्दी गद्य के आदि निर्माताओं और उन्नायक रचनाकारों में एक हैं। बालकृष्ण भट्ट जी बातचीत निबन्ध के माध्यम से मनुष्य की ईश्वर द्वारा दी गई अनमोल वस्तु वाकशक्ति का सही इस्तेमाल करने को बताते हैं। महान् लेखक बताते हैं कि यदि मनुष्य में वाक्शक्ति न होती तो हम नहीं जानते कि इस गूंगी सृष्टि का क्या हाल होता। सबलोग मानों लुंज-पुंज अवस्था में एक कोने में बैठा दिए गए होते। लेखक बातचीत के विभिन्न तरीके भी बताते हैं। यथा घरेलू बातचीत मन रमाने का ढंग है। वे बताते हैं कि जहाँ आदमी की अपनी जिन्दगी मजेदार बनाने के लिए खाने, पीने, चलने, फिरने आदि की जरूरत है, उसी प्रकार बातचीत की भी अत्यन्त आपयकता है। हमारे मन में जो कुछ मवाद (गंदगी) या धुआँ जमा रहता है वह बातचीत के जरिए भाप बनकर हमारे मन में बाहर निकल पड़ता है। इससे हमारा चित्त हल्का और स्वच्छ हो परम आनंद में मग्न हो जाता है। हमारे जीवन में बातचीत का भी एक खास तरह का मजा होता है। यही नहीं, भट्टजी बतलाते हैं कि जब तक मनुष्य बोलता नहीं तबतक उसका गुण-दोष प्रकट नहीं होता। महान् विद्वान वेन जानसन का कहना है कि बोलने से ही मनुष्य के रूप का सही साक्षात्कार हो पाता है। वे कहते हैं कि चार से अधिक की बातचीत तो केवल राम-रमौवल कहलाएगी। योरप (यूरोप) के लोगों से बातचीत का हुनर है जिसे आर्ट ऑफ कनवरसेशन कहते हैं। इस प्रसंग में ऐसे चतुराई से प्रसंग छोड़े जाते हैं कि जिन्हें कान को सुन अत्यन्त सुख मिलता है। हिन्दी में इसका नाम सुहृद गोष्ठी है। बालकृष्ण भट्ट बातचीत का उत्तम तरीका यह मानते हैं कि हम वह शक्ति पैदा करें कि अपने आप बात कर लिया करें। इस प्रकार आर्ट ऑफ कनवरसेशन मनुष्य के द्वारा आपस में बातचीत की उत्तम कला है जिसके द्वारा बातचीत को हमेशा आनन्दमय बनाए रहते हैं।